Monday, May 13, 2019

तपस्या

बिना जाने बेवकूफ बनना एक अलग और आसान चीज है। कोई भी इसे निभा देता है। मगर यह जानते हुए कि मैं बेवकूफ बनाया जा रहा हूं और जो मुझे कहा जा रहा है, वह सब झूठ है- बेवकूफ बनते जाने का एक अपना मजा है। यह तपस्या है।

Sunday, December 25, 2016

देशबंधु

प्रश्न: हिन्दुओं को एक से अधिक पत्नी रखने का अधिकार नहीं है, पर मुसलमान 3-4 पत्नियाँ रख सकता है . ऐसे में एक दिन हिन्दू अल्पसंख्यक नहीं हो जाएँगे?

उत्तर: जो आप कह रहे हैं वह 'विश्व हिन्दू परिषद्' और 'आरएसएस' का प्रचार है . आपको कई भ्रमों में फँसा लिया गया है . इस देश पर सात सौ साल मुसलमानों का शासन रहा है फिर भी हिन्दू कम नहीं हुए. अभी हिन्दू 85 फीसदी हैं . मगर हिन्दू हैं कौन? अछूत तथा नीची जाति के लोग क्या हिन्दू हैं ? ये हिन्दू हैं तो ऊंची जाति के लोग इन्हें छोटे क्यों नहीं? इन्हें सामूहिक रूप से क्यों मारते हैं? इनके झोपड़े क्यों जलाते हैं? हिन्दू कोई नहीं है - ब्राह्मण हैं, कायस्थ हैं, अग्रवाल हैं, बढई हैं, नाई हैं, भंगी हैं, चमार हैं.

एक बात सोचिये, हज़ारों सालों से इस देश में हिन्दू हमेशा करोडो रहे हैं और हमला करने वाले सिर्फ हज़ारों . मगर हारे हिन्दू ही हैं . नादिरशाह के पास सिर्फ एक हज़ार सिपाही थे . अगर हिन्दू पत्थर मारते तो भी वे मर जाते . दस हज़ार अंग्रेज़ तीस करोड़ भारतीयों पर राज करते रहे हैं . संख्या से कुछ नहीं होता .

आप सौ मुसलामानों का यूं ही पता लगाइए . इनमें कितनों की 3-4 बीवियाँ हैं . आपको किसी की नहीं मिलेगी . हज़ारों में कोई एक मुसलमान एक से ज्यादा बीवी रखता है बाकि सब एक बीवी ही रखते हैं . मुसलमान नसबंदी कराते हैं . मुसलमान औरतें भी ऑपरेशन कराती हैं . अभी संख्या ज़रूर कुछ कम है .

अच्छा हिन्दू बढाने के लिए संतति निरोध बंद कर देते हैं और हर हिन्दू को 3-4 पत्नियाँ रखने का अधिकार दे दें तो बेहिसाब हिन्दू पैदा होंगे . पर आम हिन्दू के 15-20 बच्चे होंगे इन्हें वो कैसे पालेगा? क्या खिला सकेगा? कपडे पहना सकेगा? शिक्षा दे सकेगा? ये भुखमरे, मरियल , अशिक्षित करोड़ों हिन्दू होंगे या कीड़ें और केचुएँ? क्या कीड़ें और केचुए से किसी जाति की उन्नति होती है?

आबादी बढ़ती रही तो कितना ही उत्पादन हो, हम भूखे और गरीब रहेंगे, मगर हिन्दू-मुसलमान दोनों के साम्प्रदायिक नेता अपनी जाति बढ़ाने के लिए कहते हैं. जो बात विश्व हिन्दू परिषद् वाले और आरएसएस वाले हिन्दुओं से कहते हैं वैसी ही बात मुल्ला मुसलामानों से कहते हैं - नसबंदी मत कराओ. मुसलमान बढ़ाओ. अब मुसलामानों की गरीबी, अशिक्षा आदि देखो.

शैतान धार्मिक नेताओं और सांप्रदायिक राजनीतिवालों ने यह सिखा दिया है कि हिन्दू और मुसलमान दोनों के जीवन का एकमात्र उद्देश्य और महान राष्ट्रिय कर्म एक दुसरे को दबाना है. यह हद दर्जे की बेवकूफी और बदमाशी है. ऐसा सिखाना देशद्रोह और राष्ट्रद्रोह है. हमें भारतीयता के नज़रिए से सोचना चाहिऐ.

#देशबंधु > पूछो परसाई से (अंक दिनाँक:  5 फरवरी 1984)

Saturday, December 24, 2016

सूअर

चौबे जी को मैं पांडे जी के घर ले गया।
चौबे जी के लड़के की शादी की बात पांडे जी की लड़की से चल रही थी।
हम पांडे जी के घर के बरामदे में बैठे थे। लड़की चाय-नाश्ता दे गई थी। चौबे जी ने उसे देख लिया था। पांडे जी का पैतृक मकान था। वह शहर के पुराने मुहल्ले में था। गंदा मुहल्ला था। बरामदे से कचरे के ढेर दिख रहे थे। आसपास सूअरों की कतारें घूम रही थीं।
चौबे जी यह देख रहे थे और उन्हें मतली-सी आ रही थी। वे बोले- हॉरीबल! इस कदर सूअर घूमते हैं, घर के आसपास!
बाकी बातें मुझे करनी थीं। हम लौटे। चौबे जी से मैं दो-तीन दिन बाद मिला। उन्होंने कहा- भई, लड़की ताे बहुत अच्छी है। मगर पांडे का घर बहुत गंदी जगह पर है। सूअर आसपास घूमते हैं। हॉरीबल!
मैंने कहा- मगर आपको उस घर से क्या करना है? आपको तो लड़की ब्याह कर लानी है।
चौबे जी ने कहा- मगर क्या लड़का ससुराल नहीं जाएगा? या मैं समधी से कोई संबंध नहीं रखूंगा? मैं सबसे ज्यादा इस सूअर से नफरत करता हूं। आई हेट दीज़ पिग्ज़। मुझे अभी भी उस घर की कल्पना से मतली आती है।
मैंने कहा- सोच लीजिए। लड़की बहुत अच्छी है। परिवार अच्छा है।
चौबे जी ने कहा- सो तो मैं मानता हूं। मगर मैं लड़के की बारात लेकर उनके दरवाजे पर पहुंचा और मुझे उलटी हो गई तो? दोज़ पिग्ज़। मैं बरदाश्त नहीं कर सकता।
मैंने कहा- वैसे पांडे काफी देंगे।
चौबे बोले- क्या देंगे? यही दस-पंद्रह हजार।
मैंने कहा- नहीं, पचास हजार देंगे। जेवर अलग। एक ही तो उनकी संतान है।
चौबे जी सोचने लगे। सूअर से लौटकर रुपयों तक आने में उन्हें कुछ वक्त लगा। थोड़ी और बातचीत के बाद उन्होंने कहा- जब तुम्हारा इतना जोर है, तो रिश्ता तय कर दो।
चौबे जी ठाठ से बेटे की बारात लेकर पांडे जी के द्वार पर पहुंचे।
द्वार पर पंद्रह हजार रुपए दिए गए।
शामियाने के नीचे चौबे जी बैठे थे। उनकी नजर वहीं लगी थी, जहां विवाह की रस्में हो रही थीं। वे इंतजार कर रहे थे कि थाली में पैंतीस हजार और आते होंगे।
इसी समय एक सूअर का बच्चा वहां घुस आया। दो-तीन लोग उसे बाहर खदेड़ने लगे। एक-दो ने उसे छड़ी मारी। सूअर का बच्चा घबराकर भटक गया। उसे रास्ता नहीं मिल रहा था। वह चौबे जी की तरफ बड़ा। लोग उसके पीछे पड़े थे। चौबे जी ने कहा- अरे, अरे, उसे तंग मत करो। सूअर का बच्चा बड़ा खूबसूरत होता है। वेरी स्वीट!
और चौबे जी प्यार से सूअर के बच्चे पर हाथ फेरने लगे। इसी समय थाली में पैंतीस हजार रुपए आ गए।
सूअर का बच्चा ऐसे इत्मीनान से खड़ा था जैसे अपने पिता के पास हो।

----- सूअर

आफ्टर आल आदमी

तारीख उन्नीस मार्च को लोकसभा के लिए मतदान होना था। सरकार तब कांग्रेस की थी। अठारह मार्च की शाम को पड़ोस के दो-तीन लाेगों के साथ बैठा मैं चुनाव पर बात कर रहा था। ‘वे’ भी थे।

एक ने कहा- कल मतदान हो जाएगा।

दूसरे ने कहा- इस बार जनता पार्टी का बड़ा जोर है।

वे बोले- हम तो जी, कांग्रेस को ही वोट देंगे। आफ्टर आल हम सरकारी नौकर हैं।

मतदान हो गया। बाईस तारीख को चुनाव परिणामों की घोषणा के बाद हम लोग फिर बैठे बातें कर रहे थे।

एक ने कहा- अब तो जनता पार्टी की सरकार बन ही गई।

दूसरे ने कहा- किसी को उम्मीद नहीं थी कि कांग्रेस इतनी बुरी तरह हारेगी और जनता पार्टी इस तरह जीतेगी।

वे बोले- ठीक है जी, हमारा वोट जनता पार्टी के काम आया। मुझे याद आया कि ये तो कह रहे थे कि मैं कांग्रेस को वोट दूंगा। मैंने उनसे पूछा- तो क्या आपने जनता पार्टी को वोट दिया था? वे बोले- हां जी, आफ्टर आल हम सरकारी नौकर हैं।

----- आफ्टर आल आदमी

स्नान

गर्मी में नहाना तो फिर भी माफ़ किया जा सकता है ,  पर ठण्ड में  रोज नहाना बिलकुल प्रकृति विरुद्ध है। जिन्हे ईश्वर में विश्वास है , वे यह क्यों नहीं सोचते कि यदि शीत ऋतु भी रोज नहाने की होती , तो वह इतनी ठण्ड क्यों पैदा करता ? शीत ऋतु उसने नहाने के लिए बनाई ही नहीं है, लेकिन आप 'सी सी ' करते जा रहे और रोज नहा  रहे है

#स्नान

Wednesday, July 20, 2016

भेड़ और भेड़िये- Bhed aur Bhediye

भेड़ और भेड़िये- हरिशंकर परसाई

चालीस साल बाद जब भेड़ों को दिखने लगा कि भेड़ियों का जीवन दिन प्रतिदिन सुविधाओं से भरपूर होता जा रहा है और उनको बिना कुछ किये रोज आहार के लिए पौष्टिक भेड़ें मिल रही हैं, तो उन्हें लगा कि जिस उद्देश्य से जंगल में पशुतंत्र की स्थापना हुई थी, वो रास्ते से भटक गया है। भेड़ियों को जंगल की सबसे अच्छी गुफाओं में रहने को मिल रहा है, जबकि भेड़ें अभी भी जंगल में सर्दी, गर्मी, बरसात से लड़ती रहती हैं । भेड़िये सामान्य दिनों में अपनी गुफाओं से बाहर निकलते ही नहीं थे, भेड़ों को ही अपनी समस्याओं को लेकर उनकी आलीशान गुफाओं में जाना पड़ता था । उन गुफाओं कि साज-सजावट देखकर और वहाँ सेवा के लिए लगी हुई अनेक भेड़ों को देखकर उनकी आँखें आश्चर्यचकित रह जाती थी । जबकि चुनाव आते ही ये भेड़िये भी पेड़ों के इर्द-गिर्द दस भेड़ों को सम्बोधित करते हुए दिख जाते थे ।
चालीस साल तक ऐसा होता रहा और किसी भेड़ ने आवाज नहीं उठाई और अगर उठाई भी तो उसे ठिकाने लगा दिया गया । भेड़ों में असंतोष बढ़ता गया । बहुत दिनों के बाद जंगल के दूर दराज़ के इलाकों में खबर गई कि बूढ़े पीपल के पास एक भेड़, जो किसी दूर के जंगल से उच्च-शिक्षा ग्रहण करके आया है, भेड़ों को भेड़ियों के खिलाफ जागरूक कर रहा है । बूढ़ा पीपल एक तरह से जंगल की राजधानी हुआ करता था । जंगल के सारे बुद्धिजीवी पशु यहीं पर इकठ्ठा होकर सम-सामायिक विषयों पर चर्चा किया करते थे । उस पढ़े लिखे भेड़, जिसका नाम बुधई था, ने पूरे जंगल में घूम घूमकर भेड़ियों के खिलाफ भेड़ों को बताना शुरू किया और देखते ही देखते ही जंगल में एक लहर सी व्याप्त हो गई । इस अभियान में भेड़ों का नेतृत्व करने के लिए बुधई कि अगुवाई में एक समिति का गठन किया गया जिसमें जंगल के विभिन्न क्षेत्रों के भेड़ों को प्रतिनिधित्व मिला ।
नियत समय पर समिति ने बूढ़े पीपल के पास एक विशाल विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया, जिसमें भेड़ों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया । भेड़ों से मिले समर्थन को देखकर अभिभूत होते हुए बुधई ने भेड़ों ने सम्बोधित करना शुरू किया, “मित्रों ! आज हमारे लिए बहुत बड़ा दिन है । आज हर एक भेड़ अपने अधिकारों के लिए जाग चुकी है। हम इन भेड़ियों को भेड़ों कि असली ताकत दिखाकर रहेंगे । आज तक भेड़ियों ने जो भी सुविधाएं ली हैं उसके लिए जांचपाल नाम की एक संस्था बनाई जाये जो कि यह फैसला करेगी कि ये सुविधाएं वैध हैं या अवैध। बस यही हमारी मांग हैं । और हम यह मांग मनवाकर रहेंगे । ”  भेड़ों ने एक स्वर में क्रन्तिकारी नारे लगाकर अपनी हामी भरी ।
लेकिन इतना प्रयास करने के बाद भी भेड़ियों ने सिर्फ आश्वासन दिया और कोई ठोस प्रगति नहीं हुई । इससे समिति के सदस्यों में रोष व्याप्त हो गया और उन्होंने दोबारा विरोध प्रदर्शन का आयोजन करने की घोषणा की । इस बार भी पहले की तरह भेड़ों का व्यापक समर्थन मिला लेकिन इस बार भी भेड़िये टस से मस नहीं हुए । जब समिति को लगा कि बार बार के विरोध प्रदर्शनों से कुछ नहीं होगा तो उन्होंने अगला चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी । बुधई ने भेड़ों से कहा, “एक आम भेड़ कि आवाज कोई नहीं सुनता । इस जंगल की  सारी  समस्याओं कि जड़ दो मुख्य भेड़िया दल, जंगलदेश और जंगल भेड़ पार्टी (‘जे बी पी’ ) हैं । हमें इनको उखाड़ फेंकना है । भेड़ियों को लगता है कि जांचपाल के आने के बाद उनके कारनामों की पोल खुल जायेगी इसीलिए वो यह मांग मानने को तैयार नहीं हैं लेकिन मित्रों जब जंगल की हर एक आम भेड़ जाग जायेगी तो हमें कोई रोक नहीं सकता । इस जंगल की समस्याएं तभी दूर होंगी जब एक ईमानदार भेड़ चुन कर जायेगी । आप हमें अपना बहुमूल्य मत दीजिये और हमको जांचपाल और भेड़राज देंगे । ” बुधई ने जंगल के लिए जो नयी व्यवस्था सोची थी उसका नाम भेड़राज था और उसको विस्तार से बताने के लिए ‘भेड़राज’ नामक एक पुस्तक भी लिखी थी । जब नया दल बनाया गया तो उसका नाम रखा गया : ‘आम भेड़ दल’, जिसको संछेप में ‘अभेद’ नाम से जाना गया । जब किसी ने इंगित किया कि संछेप में उसे ‘अभेद’ नहीं बल्कि ‘आभेद’ नाम से जाना जायेगा तो उसे ‘जे बी पी’ का एजेंट बताकर चुप करा दिया गया ।
जैसे जैसे चुनाव नजदीक आता गया, अपने प्रचार के लिए समिति ने नए नए तरीके खोजने शुरू किये । सबसे पहले यह फैसला किया गया कि हर एक भेड़ अपने गले में एक पट्टा बांधेगी जिसपे लिखा होगा : “मैं हूँ आम भेड़ । ” चूँकि बन्दर एक डाल से दूसरी डाल तक बहुत जल्दी पहुच जाते हैं इसलिए उनको जंगल के हर एक कोने में ‘अभेद’ का सन्देश पहुंचाने का काम दिया गया । और स्वयं बुधई अपने समर्थकों और स्वयंसेवकों के साथ हर भेड़ के इलाके में पहुंचे और उनसे ‘अभेद’ के लिए मतदान करने का आग्रह किया। चुनाव हुआ और चुनाव में ‘अभेद’ थोड़े से अंतर से दूसरा सबसे बड़ा दल बनके उभरी । सबसे बड़े दल के सरकार बनाने से मना करने के बाद ‘अभेद’ से सरकार बनाने की अपेक्षा की जाने लगी । ‘अभेद’ की समिति ने सोचा कि चूँकि उन्होंने भेड़ों से पूँछकर ही सब काम करने का वादा किया था अतः उनकी राय ली जानी चाहिए । उन्होंने फैसला किया कि कल सुबह बूढ़े पीपल के आगे इस प्रस्ताव पर भेड़मत संग्रह किया जायेगा । जो भेड़ इससे सहमत हैं वो गुलाब का फूल लेकर आएंगी और जो इससे असहमत हैं वो चमेली का फूल लेकर आएंगी ।  उनका मानना था भेड़ें भेड़ियों से बहुत त्रस्त हैं इसलिए कभी उनके साथ जाने का समर्थन नहीं करेंगी । लेकिन परिणाम इससे ठीक विपरीत निकला । गुलाब के फूलों की संख्या चमेली के फूलों से कहीं ज्यादा निकली ।
इसके बाद बुधई ने मुख्य शाषक की शपथ ली । बुधई ने आते ही अपने लिए एक बड़ी गुफा की मांग की । जैसे ही भेड़ों को ये पता चला, हाहाकार मच गया । भेड़ों ने चुनाव के पहले और चुनाव के बाद के बुधई में काफी अंतर पाया । इतना होने के बाद बुधई ने कहा ,”मुझे पुरे जंगल का सञ्चालन करने के लिए एक गुफा तो चाहिए ही लेकिन आम भेड़ अगर इससे सहमत नहीं हैं तो मैं गुफा नहीं लूंगा, यहीं आपके बीच में रहूँगा । ” बुधई के पद सँभालते ही लोग अपनी मांगो का पुलिंदा लेकर उसके पास पहुँचने लगे । बुधई ने घोषणा की भेड़ों को सप्ताह के पहले तीन दिन चारा मुफ्त में दिया जायेगा । भेड़ों को सरकारी तालाब से पीने के लिए कर चुकाना पड़ता है, अब से उन्हें दिन में सात लीटर पानी मुफ्त दिया जायेगा।  चूँकि भेड़ों के बालों को काटने से उन्हें ठण्ड लगने कि सम्भावना अधिक रहती है अतः आज के बाद से उनके बालों को काटने पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया जायेगा । बंदरों ने पेड़ों पर अधिक ऊपर तक जाकर उछलकूद करने की मांग की तो उनकी मांग भी मान ली गयी। इस पर पेड़ों पर अधिक ऊंचाई पर रहने वाले पक्षियों ने जब व्यवधान की शिकायत की तो बंदरों को उनके बच्चों की कसम दिलाई गयी कि वो अधिक ऊंचाई तक जाकर उत्पात नहीं करेंगे ।
ऐसे ही रोज रोज नयी शिकायतों और मांगो का अम्बार बुधई और उसकी सरकार के आगे आने लग गया । इसमें कुछ मांगे मान ली गई और कुछ पर गम्भीरतापूर्वक विचार करने का आश्वासन दिया गया । इस बीच कुछ अप्रिय घटनाएं घटी जिससे भेड़ों में ‘आम भेड़ दल’ के बारे में गलत सन्देश गया । समिति ने फैसला किया इस जंगल में शाषन करते हुए बाकी जंगलों में हो रहे चुनावों में हिस्सा ले पाना सम्भव नहीं है । अतः सरकार छोड़ने का कोई तरीका खोजा जाए। यहाँ पर फिर जांचपाल ‘आम भेड़ दल’ के काम आया। सरकार में इतने दिन रहने के बाद भी भेड़ों को ‘जांचपाल अधिनियम’ के बारे में विस्तारपूर्वक नहीं बताया गया ।  समिति ने फैसला किया जांचपाल के नाम से फिर से भेड़ों से मत माँगा जायेगा और इसी के नाम पर सरकार की बलि दे दी जाये । और ‘अभेद’ ने ठीक वैसा ही किया भी । भेड़ों ने जो एक बदलाव की उम्मीद देखी थी, वह उम्मीद धूमिल हो गयी । भेड़िये अपनी गुफाओं में जमे रहे ।

Monday, June 27, 2016

डिप्टी कलेक्टर

पाठक भूले न होंगे कि मुफतलाल ने डिप्टी कलेक्टर के पद के लिए आवेदन किया था।
राज्य में शासकीय नौकरियों के लिए भरती दो स्थितियों में होती थी-तब जब पद खाली हो और उन्हें भरने के लिए उम्मीदवारों की जरूरत हो, तब जब विशेष उम्मीदवार खाली हों और उन्हें भरने के लिए पदों की आवश्यकता हो। शासकीय सेवा संहिता के अनुच्छेद 2 की धारा 11, उपधारा 3 में ‘विशेष उम्मीदवार’ की परिभाषा यह दी गई थी-‘ऐसा पदेच्छु नागरिक, जिसकी योग्यता अविशेष हो, पर सम्बन्ध विशेष हों- अर्थात् राज्य में किसी ऐसे व्यक्ति का वह कृपापात्र हो, जो स्वयं शासक हो या जिसका शासनकर्त्ताओं पर प्रभाव हो।,
जब पदों को आदमियों की, या आदमियों को पदों की आवश्यकता होती, तब सरकार ‘आवश्यकता है’ शीर्षक के अन्तर्गत आवेदन-पत्र मंगाने के लिए विज्ञप्ति प्रकाशित कराती। राज्य के अखबार केवल इस विज्ञप्ति के कारण खरीदे जाते थे। जिस अखबार में यह शीर्षक नहीं दिखता, उसे कोई नहीं खरीदता था। बिक्री बढ़ाने के लिए कुछ अखबार धोखा भी करते थे।
एक अखबार ऊपर बड़े अक्षरों में छापता-‘आवश्यता है’, और जब लोग इस शीर्षक से आकर्षित होकर अखबार खरीद लेते, तब नीचे यह लिखा हुआ मिलता- ‘नदी को पर्वत की, वृक्ष को भूमि की, गाए को घास की, बच्चे को माँ की, नंगे को कपड़े की, अंधे को आँख की, कुत्ते को पट्टे की, बैल को सींग की, मालिक को नौकर की, भगवान को भक्त की, गधे को चन्दन की, बन्दर को आभूषण की-आवश्यकता किसे नहीं है ? अर्थात् सब को है।’
यह धांधली देख कर दूसरे अखबार ने चेतावनी छापी-
‘नक्कालों से सावधान। हमारे पत्र की बिक्री देख-कर कुछ पत्र ‘आवश्यकता है’ शीर्षक देकर निरर्थक बातें छाप कर भोली-भाली जनता को धोखा देते हैं। इन विज्ञप्तियों में नौकरी के लिए आवेदन करने की सूचना नहीं रहती। हम जनता को चेतावनी देते है कि असली विज्ञप्ति देखकर और पूरा मजमून पढ़कर ही अखबार खरीदें। नक्कालों से सावधान रहें।’
एक-एक पद के लिए कई हजार आवेदन-पत्र आते। इन्हें छाँटने में दो-तीन साल लग जाते। इसके बाद उम्मीदवारों की परीक्षा और इण्टरव्यू होती। नियम के अनुसार हर उम्मीदवार को हर तीन महीने में सूचित करना पड़ता था। कि मैं अभी जीवित हूँ। जो सूचना नहीं देता, उसे मरा मानकर उसका नाम काट दिया जाता था। इससे चुनाव में सुविधा होती थी।
दो वर्ष बाद मुफतलाल को ‘शासकीय सेवा विभाग’ के कार्यालय से सचिव के एक पत्र की नकल’ संचालक, सेवा विभाग के मार्फत, मिली। उस समय विभाग के सचिव श्रीमान् अस्पष्टजी थे। पत्र की नकल नीचे दी जा रही है-
कार्यालय, शासकीय सेवा विभाग
प्रति,
श्री मुफतलाल बी.ए.
संदर्भ- डिप्टी कलेक्टरी के लिए आपका आवेदन-पत्र

आपको सूचित किया जाता है कि आवेदन-पत्र यथा समय इस कार्यालय में प्राप्त हो गया। ‘शासकीय सेवा अधिनियम’ की धारा 17 के अनुसार आप एक माह के भीतर इस कार्यालय को प्रमाण-पत्र सहित यह सूचित करें कि आप किसके ‘आदमी’ हैं तथा वे किस श्रेणी में हैं।
सही- (अस्पष्ट) सचिव।